Akassh_ydv

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मेरे हमसफ़र

तेरे सांचे में ढल गया आख़िर
शहर सारा बदल गया आख़िर
तेरी सांसो की गरमी से जाना
ये पूरा बदन पिघल गया आखिर
थे कुछ ख्वाब शाख से जुदा हुए सूखे पत्ते से
तेरी बेरुखियों के चिंगारी मे सारे जल गए आखिर
जब तुम तुम न रहे तो फिर मेरा होना किस काम का
छोड़ कर हमको वीराने में तन्हा
मेरे सारे ख़्वाब तेरे महल गए आखिर
कुछ इस कदर बंधी थी कसमों की जंजीरें पैरों में मेरे
थी दौड़ने की चाह पर सिर्फ रेंग कर ही बहल गए आखिर
कुछ इख्तियार नहीं किसी का तबिअत पर
यह जिस पर आती है बेइख्तियार आती है
चलो अब बहुत हुआ ज़िन्दगी के सफर का ये फ़लसफ़ा
हम भी अपने और तुम भी अपने घर गए आखिर

                                                @आकाश


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4 Comments

Sachin dev

17-Dec-2022 04:47 PM

Well done 👍

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Gunjan Kamal

17-Dec-2022 02:33 PM

शानदार प्रस्तुति 👌

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Renu

17-Dec-2022 08:18 AM

बहुत ही सुन्दर 👍👍🌺

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